5. पांचवां स्वरूप - संतान लक्ष्मी, मां लक्ष्मी का पांचवां स्वरूप मानी गई हैं। जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है, संतान लक्ष्मी की आराधना से साधक को संतान सुख की प्राप्ति होती है। संतान लक्ष्मी ने अपने इस स्वरूप में एक बच्चे को गोद में लिया हुआ है। साथ ही दो घड़े, एक तलवार और एक ढाल भी धारण किया हुआ है। यह रूप स्कंदमाता की तरह ही है इसलिए स्कंदमाता और संतान लक्ष्मी को एक समान माना जाता है।
6. छठा स्वरूप - मां लक्ष्मी के छठे स्वरूप की बात करें तो वह वीरलक्ष्मी हैं। अपने नाम के अनुसार यह स्वरूप जीवन के संघर्षों पर विजय प्राप्त के लिए वीरता प्रदान करता है। देवी वीरलक्ष्मी ने अपनी आठ भुजाओं में विभिन्न तरह के अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं। इनकी पूजा युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए की जाती है।
7. सातवां स्वरूप - मां अष्टलक्ष्मी का सातवां स्वरूप विजयलक्ष्मी को माना गया है। यहां वियज का अर्थ है जीत। मां लक्ष्मी का यह स्वरूप अपने भक्तों को अजय-अभय प्रदान करता है। ऐसे में किसी भी संकट में फंसे लोग विजय प्राप्ति के लिए मां विजयलक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं।
8. आठवां स्वरूप - विद्यालक्ष्मी को मां अष्टलक्ष्मी का आठवां स्वरूप माना गया है। अपने नाम की भांति ही विद्यालक्ष्मी साधको को शिक्षा और ज्ञान प्रदान करती हैं। साथ ही इनकी आराधना करने से भक्तों की बौद्धिक क्षमता में भी वृद्धि होती है।